top of page

ऋतुबद्ध जनपञ्चाङ्ग( वैदिक दिनदर्शिका )
Vaidik Calendar

To Download the Vaidik Calendars,

Click on the following:

1

शके १९४७ ची वैदिक दिनदर्शिका

For any Suggestions, Response, Queries, Doubts etc please send WA message to 9405073725 or Email to vaidikdinadarshika@gmail.com

2

अर्ध वर्षाचे ऋतुबद्ध जनपञ्चाङ्ग

For any Suggestions, Response, Queries, Doubts etc please send WA message to 9405073725 or Email to vaidikdinadarshika@gmail.com

3

शके १९४६ ची वैदिक दिनदर्शिका

For any Suggestions, Response, Queries, Doubts etc please send WA message to 9405073725 or Email to vaidikdinadarshika@gmail.com

निवडक विषयावरच्या छोट्या छोट्या लेखांची मालिका :
A series of Articles on a given related Topics : 

हिन्दी:

वैदिक दिनदर्शिका:

प्राचीन भारत में समय की गणना केवल दिनों और तिथियों का हिसाब नहीं थी — यह ब्रह्मांडीय लय के साथ जुड़ने की एक साधना थी।
वैदिक दिनदर्शिका का उद्देश्य इसी सनातन ज्ञान को सहज रूप में सभी तक पहुँचाना है।

यहाँ आप नि:शुल्क वैदिक कैलेंडर डाउनलोड कर सकते हैं, साथ ही उन लेखों को पढ़ सकते हैं जो बताते हैं कि
वास्तविक नक्षत्र, ग्रहों की गति, और चंद्र-सूर्य के संयोग कैसे हमारी दिनचर्या, साधना, और जीवन के प्रवाह को प्रभावित करते हैं।

हमारा उद्देश्य किसी मत या परंपरा की तुलना करना नहीं है, बल्कि “सत्य को समझने की साधना” में सबको साथ लेकर चलना है।
हम मानते हैं कि समय स्वयं एक जीवित ऊर्जा है — और जब हम उसे वैदिक दृष्टि से समझते हैं, तो हमारा प्रत्येक क्षण अधिक सजग, संतुलित और ईश्वरीय हो उठता है।

मराठी:

वैदिक दिनदर्शिका:

भारतीय परंपरेत ‘काळ’ ही फक्त दिवस मोजण्याची पद्धत नाही, तर तो विश्वाच्या तालावर चालणारा आध्यात्मिक प्रवास आहे।
वैदिक दिनदर्शिका या सनातन ज्ञानाचा सुलभ परिचय करून देण्याचा एक नम्र प्रयत्न आहे।

या पृष्ठावर आपण वैदिक दिनदर्शिका मोफत डाउनलोड करू शकता, तसेच त्या संबंधित लेख वाचू शकता ज्यातून समजते की खरे नक्षत्र, ग्रहांची खरी गती,
आणि सूर्य–चंद्राचे संयोग आपल्या जीवनाच्या प्रत्येक क्षणावर कसे सूक्ष्म परिणाम घडवतात।

आमचा हेतू कोणत्याही मताला कमी लेखणे नाही, तर सत्याच्या शोधात सर्वांना प्रेमाने सोबत घेणे आहे।
आमचा विश्वास आहे की काळ हा एक सजीव शक्ती आहे, आणि जेव्हा आपण त्याला वैदिक नजरेतून जाणतो, तेव्हा प्रत्येक क्षण अधिक जागृत, संतुलित आणि ईश्वरमय होतो।

निवडक विषयावरच्या छोट्या छोट्या लेखांची मालिका :
A series of Articles on a given related Topics : 

हिन्दी

1. अधिमास

(१) मलमास (पुरुषोत्तम मास) और सूर्य सङ्क्रांतीधिमास

मलमास और सूर्य सङ्क्रांती (१) पृथ्वीकी एक सूर्य प्रदक्षिणा 365 दिनोंमे @ पूरी होती है, यह हम सभी जानते है। इसीलिये सौर वर्ष 365 दिनों का होता है। इसका संबंध सूर्य के "राशि" संक्रमणपर आधारित होता है वही चांद्रमास की "तिथि" सूर्य सापेक्ष चन्द्र की दूरीपर। सूर्यका "राशि संक्रमण" मतलब एक "राशी"से अगली "राशी"में प्रवेश करना । यहाँ ध्यान रखना जरूरी है की "राशि" यह संकल्पना भारतीय नही है। वे दों मे राशियों का जिक्र नही है। लेकिन पृथ्वीका सूर्य सभोवतीका भ्रमण मार्ग - क्रांतिवृत्तके - 12 खंडोका जिक्र है। इन 12 खंडोमें (राशियों में ?) भ्रमण करते समय एक खंडसे अगले खंडमें (राशीमें ?) प्रवेश सूर्यका संक्रमण - सूर्य संक्रांती - कहलाता है। यह खगोलीय घटना है। तब इसकी निश्चिती करना आसान है। इस निश्चिती के आधारसेही सौर मास निश्चिती होती है। इसी वजहसे सौर और चांद्र वर्षमान इन दोनों का संबंध तय करने के लिये प्रत्यक्ष सूर्य संक्रमण (वास्तव सूर्य संक्रांत) का संदर्भ लिया जाता है । (क्रमशः) तिथी : अधिक आश्विन शुक्ल पंचमी (२८/०८/२०२५) WA 9405073725 vaidikdinadarshika@gmail.com

(२) मलमास और सूर्य सङ्क्रांती

(३) मलमास और सूर्य सङ्क्रांती

भारतीय कालगणना चांद्र-सौर (Luni Solar) है। मात्र सौर (पाश्चात्य ?) अथवा मात्र चांद्र (आखाती) नही होती । पृथ्वीपर ऋतुओंका घटना सूर्य के कारण है। सूर्यामुळे म्हणजे पृथ्वीच्या सूर्याभोवतीच्या भ्रमणामुळे. याचा अर्थ सूर्य हा ऋतूंचा कारक. सौर व चांद्र या दोन्ही कालगणनेत वर्षाचे महिने ऋतूंशी जोडलेले आहेत. म्हणूनच पञ्चाङ्गांत चांद्र मासांची सांगड सौर मासांशी - सूर्य संक्रमणाशी - घातली आहे. (अधिकमास) मधु, माधव .. तपस्, तपस्य ही सौर मासांची नावे आपल्याला परिचित असतीलच असे नाही. परंतु चैत्र, वैशाख .. माघ, फाल्गुन या चांद्रमासांशी आपण परिचित असतो. कारण आपले धार्मिक विधी, सण, उत्सव, मुहूर्त हे ऋतू आणि तिथींशी निगडित आहेत. अब ऋतू - सौर मास अन् ऋतु - चांद्र मास इनका संबंध देखते है। (क्रमशः) तिथी : अधिक आश्विन शुक्ल सप्तमी (३०/०८/२०२५) WA 9405073725 vaidikdinadarshika@gmail.com

(५) मलमास और सूर्य सङ्क्रांती

(६) मलमास और सूर्य सङ्क्रांती

सूर्य संक्रमण नही हो वह चांद्र मास महिना अधिक चांद्र मास होता है इसका प्रचीती इस वर्ष के (शके १९४७) प्रचलित पञ्चाङ्गों से कर सकते है। (महाराष्ट्रमें) प्रचलित ४ - ५ पञ्चाङ्गों में दी हुई जानकारी इस प्रकार है : १) आषाढ कृष्ण १३ : २२ जुलै :: सिंहायन मतलब सूर्य का सिंह "राशी" प्रवेश २) श्रावण कृष्ण १४ : २२ ऑगस्ट :: कन्यायन (शरद ऋतु प्रारंभ) मतलब सूर्य का कन्या "राशी" प्रवेश ३) आश्विन शुक्ल १ : २२ सप्टेंबर :: तुलायन मतलब सूर्य का तुला "राशी" प्रवेश इससे दिखता है की आषाढ और श्रावण मासों में सूर्य संक्रमण है। उस पश्चात आश्विन माह में। मसलन "भाद्रपद" महिने में सूर्य का "राशी" संक्रमण नही है। तब तो यह मास अधिक मास होना चाहिये। लेकिन ऐसा नही दर्शाया है। यही सांप्रत शुरू अधिक आश्विन माह है। (संपूर्ण) इस विषयपर आपकी टिप्पणी. प्रश्न, शंका आदि का स्वागत है। तिथी : अधिक आश्विन शुक्ल दशमी (०२/०९/२०२५) WA 9405073725 vaidikdinadarshika@gmail.com

सौर और चान्द्र वर्ष गणनानुसार एक वर्ष में इन दोनों में 11 दिनोंका (365 और 354) अंतर पडता है। दुसरे वर्ष अंतर 22 तथा तिसऱरे वर्ष 33 दिनोंका होता है। उस वर्ष में जब 33 दिनों का अंतर ३३ आता है, एक अतिरिक्त चांद्रमास जोडा जाता है जिसे अधि मास, पुरुषोत्तम मास, मलमास कहा जाता है। जिस वर्ष अधिकमास होता है उस वर्ष अंतर 4 दिनों का होता है। अब चौथे, पाँचवे और छठे वर्ष में अंतर 15, 26, और 37 दिनांका हो जाता है। जिस वर्ष अंतर 37 दिनों का होता है उस वर्ष शेष अंतर र दिनों का हो जाता है। यह प्रक्रिया शुरू रहती है। इस प्रक्रिया के चलते चांद्रमासोंका नामकरण सौर मासोंसे - मतलब सूर्य संक्रमणसे - जुडा होता है। परिणामस्वरूप प्रक्रियेमुळे चांद्रमासोंकी ऋतुबद्धता टिकी रहती है। प्रायः 19 अथवा 141 वे वर्षमें पुनर्साम्यता आती है अथवा आ सकती है। (क्रमशः) @ सौर चांद्र वर्ष और चांद्रमास इनका काल यहाँ पूर्णांकमें लिखा है। वास्तव में वह काल पूर्णांक में नहीं होता । उसका अंश काल (अपूर्णांक) यहाँ नहीं लिखा है। तिथी : अधिक आश्विन शुक्ल षष्ठी (२९/०८/२०२५) WA 9405073725 vaidikdinadarshika@gmail.com

ऋतु और महिनोंका संबंध : ऋतु सौर मास चांद्रमास --------------------------------------------- वसंत : मधु - माधव चैत्र - वैशाख ग्रीष्म : शुक्र - शुचि ज्येष्ठ - आषाढ वर्षा : नभस् - नभस्य श्रावण - भाद्रपद शरद : इष - ऊर्ज आश्विन - कार्तिक हेमंत : सहस् - सहस्य मार्गशीर्ष - पौष शिशिर : तपस् - तपस्य माघ - फाल्गुन ☝🏻 इसे ध्यान से पढने से सौर - चांद्र मास और ऋतुओंका सम्बन्ध उजागर होगा । ऋतुबद्धता के लिये यह संदर्भ बहुत महत्व रखता है। (चांद्रवर्ष में अधिकमास की योजना ऋतुबद्धता कायम रखने हेतु ही की गई है।) (क्रमशः) तिथी : अधिक आश्विन शुक्ल अष्टमी (३१/०८/२०२५) WA 9405073725 vaidikdinadarshika@gmail.com

(४) मलमास और सूर्य सङ्क्रांती

सौर मास सूर्य संक्रांती से जुडा हुआ है यह हमने देख लिया है। अब इस सूर्य संक्रांती के विषयमें जान लेते है। आंग्ल (Gregorian) वर्षानुसार हर महिने के 21 तारीख के दरमियान सूर्यसंक्रमण - सूर्य संक्रांति - घटित होती है। उसी दिन सौर मास शुरू होता है। जिस दिन कोई भी सौर मास शुरू होता है उस पश्चात आनेवाली पहली शुक्ल प्रतिपदा संदर्भित चांद्र मासकी शुक्ल प्रतिपदा होती है। मतलब साधारणतः हर एक चांद्रमास में एक सूर्य संक्रमण घटित होता है। हमने शुरूमें देखा है की हर तीसरे वर्ष में अधिक चांद्र मास आता है। उसकी पहचान यह है की उस चांद्रमासामें सूर्य संक्रमण नही होता है ! ऐसे चांद्रमास को अगले चांद्रमासका नाम "अधिक" यह उपाधी के साथ दिया जाता है। अगले चांद्रमास को "निज" यह उपाधी जोडी जाती है। (क्रमशः) तिथी : अधिक आश्विन शुक्ल नवमी (०१/०९/२०२५) WA 9405073725 vaidikdinadarshika@gmail.com

मराठी

Quick LInks

Contact us:

  • Facebook
  • Twitter
  • Instagram
  • Youtube

Phone:  +91 7843007413 

Address: First floor, Rathi Chambers, Above Yamaha service Centre,  GPO Road, Khadkali Signal, Ganjmal, Nashik - 422001

bottom of page